Sunday, January 13, 2013

दीदार का इंतजार



वो जाड़ो की सर्दी में जब सभी अपनी रजाई और गद्दों में दुबक के बैठे थे,
अचानक से आयी एक सूरज की किरण ने जैसे सबमे उत्साह सा ला दिया 

मैं बैठा था अपनी बालकनी में और बस उसका आनंद ले रहा था,
कभी पत्तो पे पड़ी रोशनी तो कभी पानी पर बनती चमक देखता 

वो हलकी सी गरमाहट वो भीनी भीनी सी हवा के झोको का अजीब सा मिलन था, 
मैं कभी हल्का सा ठिठुरता तो कभी थोडा गरमाहट का आनंद लेता 

कहीं चिड़ियों की चहचाहट कभी कबूतरों की गुटुर्गू,
ये एहसास था इस बात का क मैं अकेला नहीं हूँ 

मैं अकेला नहीं था जो उस मौसम का लुफ्त उठा रहा था, 
मैं अकेला नहीं था जो कुदरत के हसीन लम्हों को निहार रहा था 

वो धूप वो पानी वो पत्ते वो पंछी  सबको था जैसे एक दूजे का इंतजार, 
मैं तो बस भूलवश जैसे देख रहा था ये सब होते साकार 

मई चलता हूँ उस पल की नाव में फिर से सवार होने,
उस धूप उस पानी और उन पत्तो का दीदार करने 

सोच कर बस यही बात मैं वापस  फिर से चल पड़ा हूँ , 
के काश ये पल ये लम्हा फिर कभी और मिलेगा दीदार करने .......
के काश ये पल ये लम्हा फिर कभी और मिलेगा दीदार करने .............